// कोई विद्रोह //
सन 1859 में ब्रिटिश सरकार ने दक्षिण बस्तर में जंगल को काटने का ठेका हैदराबाद के व्यापारियों को दे दिया। इस ठेकेदारी प्रथा के लेकर स्थानीय जमींदार और कोई आदिवासियों में असंतोष का वातावरण फ़ैल गया। ठेकेदार मनमानी करने लगे।
पोतेकेला के जमींदार नागुल दोरला ने कोई आदिवासियों के साथ मिल विद्रोह कर दिया। इस विद्रोह में रामभोई (भोपालपट्टनम के जमींदार) और जग्गा राजू (भेज्जी के जमींदार) ने कोई विद्रोह में साथ दिया। नागुर दोरला के नेतृत्व में यह निर्णय लिया गया की भविष्य में बस्तर में साल वृक्ष को काटने नही दिया जायेगा। "एक साल वृक्ष के पीछे एक व्यक्ति का सिर" का नारा बुलंद कर दिया।
इस
विद्रोह का सूचना पाकर अंग्रेजो ने बन्दुकधारी सिपाही भेज दिया। कोई
विद्रोहियों ने ठेकेदारों सहित सपहियों को खदेड़ दिया। अंत में अंग्रेजो ने
ठेकेदारी प्रथा को समाप्त कर दिया।
छत्तीसगढ़ के बस्तर में कोई विद्रोह को भारत में हुए चिपको आन्दोलन के सामान विद्रोह था।