कहानी - दया का पुल |

 


दया का पुल - The Bridge of Compassion - schoolstuffs36garh.in
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एक बार की बात है एक नन्हीं गिलहरी थी। एक दिन वह नदी किनारे खेल रही थी कि वह नदी में गिर गई। वह डूबने लगी तो उसने मदद के लिए चिल्लाना शुरू किया।

नदी के किनारे एक बंदर बैठा था। उसने गिलहरी को देखा तो उसे तुरंत बचाने के लिए कूद गया। उसने गिलहरी को अपनी पीठ पर बैठा लिया और नदी के उस पार ले गया।

गिलहरी बंदर के बहुत शुक्रगुज़ार थी। उसने बंदर से कहा, “आपने मेरी जान बचा ली है। मैं आपका कभी भी बदला नहीं चुका पाऊंगी।”

बंदर ने कहा, “कोई बात नहीं। मुझे खुशी है कि मैं तुम्हारी मदद कर सका।”


इस कहानी को अंग्रेजी में पढ़ने के लिये नीचे दिये गये लिंक को क्लिक करें :-

The Bridge of Compassion ]


कुछ दिनों बाद बंदर जंगल में घूम रहा था कि वह शिकारी के जाल में फंस गया। जाल बहुत मजबूत था और बंदर उससे छूट नहीं पा रहा था।

बंदर जोर-जोर से चिल्लाने लगा। गिलहरी जंगल में घूम रही थी और उसने बंदर की आवाज़ सुनी। वह बंदर के पास गई और उसे जाल में फंसा हुआ देखा।

गिलहरी को तुरंत बंदर को बचाने का विचार आया। उसने अपने तीखे दांतों से जाल को काटना शुरू किया। थोड़ी देर में गिलहरी ने जाल को काट दिया और बंदर को मुक्त करा दिया।

बंदर गिलहरी के बहुत शुक्रगुज़ार था। उसने गिलहरी से कहा, “तुमने मेरी जान बचा ली है। मैं बहुत भाग्यशाली हूं कि तुम मेरी दोस्त हो।”


नैतिक शिक्षा: 

दया और मदद करने की भावना बहुत अच्छी होती है। जब हम दूसरों की मदद करते हैं तो उन्हें खुशी होती है और हमें भी खुशी मिलती है।

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